कितने सुंदर कितने प्यारे,
प्रकृति के ये अद्भुत नज़ारे !
ये बहती हुई सुंदर नदिया ,
जो सिखाती है सदा चलते रहना !
ये ऊँचे स्थिर पर्वत और पहाढ़ ,
जो सिखाते है सच्चाई पर अटल रहना !
कोमल हरे पते ,खिलखिलाते फूल ,
जिन्हें देख हम दुःख जाते है भूल !
लहलहाते खेतो को देखकर ,खुश हो जाते है सारे....
कितने सुंदर,कितने सुंदर प्यारे ,
प्रकति के ये अद्भुत नज़ारे !
सब चाहते है नदी ,पर्वतो जैसे बनना ,
कभी न रुकना सदा चलते रहना !
फिर भी हो जाती है हमसे कोई चूक ,
क्यूंकि आदमी को है पैसे की भूख !
प्रकृति सिखाती है हमे मिलकर रहना,
ये बात न हम समझ पाते !
पैसे की चाह नही मिटती ,न मिटती ईर्ष्या ,
लेकिन हम सब मिट जाते !
आओ करे हम सब ये संकल्प ,
हमेशा आगे बढे कभी न हारे !
तभी तो हम कह पाएंगे......
कितने सुंदर ,कितने प्यारे ,प्रकृति के ये अद्भुत नज़ारे !!
POONAM, MDST - IEC K/SAIN
Monday, June 22, 2009
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Nice Work
ReplyDeletePriya
nice to see ur poem. this is realy very near to us. keep it up
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